ध्यान की मूल बातें क्या है ?

योग परंपरा में, ध्यान के तीन चरण हैं- आत्मा, धारणा और ध्यान। चौथा चरण भी है, लेकिन यह अंतिम और असाधारण चरण है और इसे समाधि कहा जाता है यह गंभीर आध्यात्मिक साधकों के लिए है और हम उस पर अलग से चर्चा करेंगे। पहला चरण प्रत्याहार का मतलब है इंद्रियों को बाहर सेअपने अंदर वापस लाना। यह ध्यान की शुरुआत है दूसरा चरण है जिसे धारणा कहा जाता है। इसका अर्थ है कुछ अवशोषित करना और उस पर लीन हो जाना । इसका मतलब है "धारण करना ' | हमारा मुख्य उद्देश्य हमारी चेतना का साक्षी बनना और अपने मन या अहंकार से अलग होना है। तीसरे चरण को ध्यान कहा जाता है। इसका अर्थ है 'सजग रहना '| यह गहरी अवस्था है जहां आप सच्चे साक्षी बन गए हैं और अपने अहंकार को अपने सच्चे स्व ( मूल प्रकृति या आत्मन) से अलग कर चुके हैं। जागरूकता अभ्यास में हम मुख्य रूप से धरणा क्रिया करेंगे ।

द्रष्टा भाव

द्रष्टा भाव  à¤•िसी भी ध्यान का à¤…भ्यास की कुंजी है, हालांकि अवलोकन के उद्देश्य भिन्न हो सकते हैं। आप अपने  à¤µà¤¿à¤šà¤¾à¤°à¥‹à¤‚ या अपनी  à¤¶à¥à¤µà¤¶à¤¨ क्रिया को  à¤¯à¤¾ चक्रों के माध्यम से ऊर्जा के  à¤ªà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¹ का अवलोकन कर सकते हैं | हम किसी भी ध्यान संबंधी अभ्यास में, द्रष्टा  à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ से घटना से दूर जाते हैं; हमारी भावनायें  à¤¶à¤¾à¤‚त  à¤¹à¥‹ जाती है |  à¤¹à¤® महसूस करते हैं कि आत्मन ( हमारी मूल प्रकृति) और हमारा  à¤®à¤¨  (जो विचारों और भावनाओं को उत्पन्न करता है)अलग चीजें  à¤¹à¥ˆà¤‚|  à¤¹à¤®à¤¾à¤°à¥‡ शरीर अवलोकन हमें अपने वास्तविक्ता  à¤ªà¤° लाता है

निज भाव से सार्वभौम सजगता

ध्यान के सबसे महत्वपूर्ण स्तम्भों में  à¤¸à¥‡ एक यह है  - निःस्वार्थ भाव, निज भाव  à¤•ा  à¤¤à¥à¤¯à¤¾à¤—  à¥¤ यह बहुत ही स्पष्ट और काफी सूक्ष्म लेकिन फिर भी महत्वपूर्ण है।  à¤•ोई स्व नहीं है  - अर्थ यह नहीं है कि आप अकेले नहीं हैं, बल्कि यह है की आप  à¤¸à¤¬ कुछ के साथ जुड़े हैं। आपकी जागरूकता ब्रह्मांड में सब कुछ के साथ जुडी हुई है इसलिए अहंकार की कोई भावना नहीं होनी चाहिए , स्वयं की कोई भावना नहीं होनी चाहिए , कोई निज -सेवारत व्यवहार नहीं है, कोई स्वार्थ नहीं है।  à¤µà¤¿à¤šà¤¾à¤° यह है कि हम स्वयं  à¤…धूरे हैं|  à¤¸à¤­à¥€   एक दूसरे से जुड़े होते हैं और एक साथ- साथ  à¤šà¥‡à¤¤à¤¨à¤¾ है | यही वह जगह है की जब  à¤¹à¤® अनन्तता का अनुभव करते हैं तो हम अपनी सच्ची प्रवृति को समझते हैं |  à¤¨à¤¿à¤œ की भावना से सार्वभौम भावना à¤…यं निज: परो वेति गणना लघुचेतसाम् ।उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ॥

स्वाध्याय - अपने आप को जानना

स्वयं अध्ययन को स्वाध्याय  à¤•हा जाता है।  à¤‡à¤¸ शब्द के दो अर्थ हैं, एक यह है कि आप स्वयं (अपने  à¤†à¤ª ) किसी वास्तु का अध्ययन करते हैं और दूसरा यह है कि आप स्वयं ( अपने आप  ) का अध्ययन करते हैं।  à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¨ में इस शब्द की व्याख्या  à¤¸à¥à¤µà¤¯à¤‚ का अध्ययन है। ध्यान के भीतर व्यक्ति  à¤¦à¥‡à¤– रहा है, अपनी भावनाओं को , खुद के विचारों  à¤•ो.  à¤…पनी स्मृतियों , और हम उनके बारे में कैसा महसूस करते हैं। कैसे अलग अलग विचार मन में  à¤†à¤¤à¥‡ हैं, विभिन्न स्मृतियाँ दिखाई देती हैं और चली जाती हैं।  à¤‡à¤¸à¤•ा अभ्यास  à¤¹à¥‹ सकता है कि आपका साँस लेने का तरीके को देखना , इसका अभ्यास  à¤•ि आप जिस तरह से महसूस कर रहे हैं, उसको स्वयं का अवलोकन कर महसूस करना।  à¤‡à¤¸à¤•ा मतलब यह हो सकता है कि आप जिस तरह से सोच रहे हैं या अलग-अलग विचार आपके मानस  à¤ªà¤Ÿà¤² पर आ रहे हैं, उनको देखना

नश्वर, क्षण भंगुर सृष्टि

ध्यान करते समय आप नश्वरता (क्षण भंगुर सृष्टि ) के बारे में जानेंगे। आपको बहुत सारी चीजों के बारें में मालूम पडेगा जो की इस संसार में नश्वर / à¤…स्थायी à¤¹à¥ˆ जैसे की आकाश  à¤®à¥‡à¤‚ बादल । इसलिए  à¤†à¤ªà¤•ी सोच, आपकी उपलब्धि, आपकी ख़ुशी, आपका गम, आपका गुस्सा, आपकी यादें ये सारी चीजें नश्वर हैं, एक दिन ख़त्म होने वाली  à¤¹à¥ˆà¥¤  à¤¹à¤®à¤¾à¤°à¤¾ जीवन अस्थायी है इस दुनिया में कुछ भी स्थायी नहीं है।  à¤§à¤¾à¤°à¤£à¤¾ - ध्यान हमें अस्थायी / नश्वर चीजों का अनुभव कराता है और हमें सत्यता के बारे में बताता  à¤¹à¥ˆ  à¤œà¥‹ हमेशा के लिए हो।

शून्यता

ध्यान का पहला स्तंभ शून्यता है। ध्यान का एक सबसे बड़ा प्रभाव  à¤¹à¥ˆ - अपने आप को शून्य करना, खाली करना , अपना मन / दिमाग  à¤•ो विचारों से खाली करना, अपनी  à¤œà¤¾à¤—रुकता को पूरी तरह से खाली करना, जिससे की इधर- उधर के ध्यान, नकारात्मक सोंच, पुरानी यादें और भविष्य की आकांक्षाओं से स्वतंत्र हो सकें। à¤¯à¤¹ आपको वर्तमान में रहना, वर्तमान में मौजूद रहना और वर्तमान में जो भी हो रहा है उसका पालन करने में मदद करेगा। à¤¶à¥‚न्यता  à¤à¤• खाली  à¤¬à¤°à¥à¤¤à¤¨ की तरह है, जैसे कि खाली बर्तन  à¤®à¥‡à¤‚ कुछ भी रखा जा सकता है, चाहें आप पानी रखियें, जूस रखियें  à¤¯à¤¾ दही , जो कुछ भी आप  à¤°à¤–तें है वो उसी आकर में ढल जाएगा, आसानी से स्वीकार कर लेगा और उसी शक्ल ले लेगा जैसा उसका आकार होगा। à¤…गर आपका मन  / दिमाग खाली नहीं है तो वो कोई नई चीज को स्वीकार नहीं करेगा, नई ज्ञान को भी स्वीकार नहीं करेगा ना ही वर्त्तमान की असलियत को।इसलिए शुरुआत करने से पहले अपने आप को शून्य करना जरुरी है , और यही ध्यान है जो हमें शून्य  / खाली करता है।  à¤‡à¤¸à¤•े जुड़ी एक बात और है जिसे हम अनन्त  à¤•हते  à¤¹à¥ˆà¤‚। धारणा और ध्यान में शून्यता और अनंत का अवधारणा जुड़ी है। ध्यान में कोई भी चीज अनन्त  à¤¦à¤¿à¤–ता है और मन बहुत शांत हो जाता है। à¤œà¥ˆà¤¸à¥‡  à¤¶à¤¾à¤‚त रहने का तरीका है - नीले आकाश को देखना, एक तरफ आकाश आपको खाली दिखता है तो दूसरी तरफ अनंत।  à¤…तः धारणा - ध्यान में शून्यता और अनन्तता का यह बहुत दिलचस्प संयोजन है। एक बार जब हम इस ध्यान का अनुभव करते हैं तो हम खाली / शून्य हो जाते हैं, और यही धारणा - ध्यान के सिद्धांत में से एक है।